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Thursday, May 1, 2008

हवामहल की ज़मीन

हवामहल का नाम आते ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। लगता है जब हवामहल की बात होगी तो कुछ मज़ेदार बातें होगी।

हवामहल की अधिकतर झलकियों का विषय रहा पति-पत्नी की नोंक-झोंक। कभी-कभी तो ऐसी भी बातें हुई जो सत्य से परे है जैसे मरने के बाद अपनी शोक सभा देखना, चाँद के लोगों का ज़मीं के लोगों से मिलने आना वग़ैरह वग़ैरह…

मगर कभी-कभार हवामहल का एक अलग ही रूप देखने को मिला। जिस तरह सिक्के के दो पहलू होते है वैसे ही है यह दो रूप पर सिक्के के जिस ओर मूल्य लिखा होता है वहीं अधिकतर देखा जाता है उसी तरह हवामहल का भी रोचक पहलू ही देखा गया।

सिक्के के दूसरे पहलू में जिस तरह महत्वपूर्ण मुद्रा अंकित होती है पर जिसकी ओर देखने की आवश्यकता महसूस नहीं होती और कभी-कभार ही नज़र चली जाती है उसी तरह हवामहल का यह पहलू है जिसमें साहित्यिक रचनाओं का नाट्य रूपान्तर प्रस्तुत किया जाता है।

सबसे पहला नाम उभर कर आता है शरतचन्द्र के मूल बंगला उपन्यास का हिन्दी नाट्य रूपान्तर - परिणीता। रविन्द्रनाथ टैगोर के उपन्यास को भी इसी तरह "नौका डूबी" शीर्षक से प्रस्तुत किया गया। बाद में हवामहल की प्रकृति के अनुरूप इस विषय को आधुनिक रूप में भी प्रस्तुत किया गया जिसमें दुल्हनें नहीं केवल उनकी चप्पलें बदलती है।

साहित्य से चुनी हुई कहानियों का भी नाट्य रूपान्तर किया गया जैसे रविन्द्रनाथ टैगोर की कहानी जीवित या मृत, प्रेमचन्द की कहानी पूस की रात।

भारतीय साहित्य ही नहीं विदेशी साहित्य को भी शामिल किया गया। प्रसिद्ध अंग्रेज़ी कहानी "द लास्ट लीफ़". इसके अलावा एकाध झलकी मैनें ऐसी भी सुनी थी जो मूल रूसी कहानी के अंग्रेज़ी अनुवाद से किया गया हिन्दी नाट्य रूपान्तर था जिसके नाम मुझे याद नहीं आ रहे।

विदेशी साहित्य में सबसे अच्छे लगते थे ओ हेनरी की कहानियों के हिन्दी नाट्य रूपान्तर जिसमें सबसे अच्छी लगी - साबुन की टिकिया।

हालांकि हवामहल की लोकप्रिय झलकियों की जब भी चर्चा होती है उसमें इनमें से किसी का भी नाम नहीं होता क्योंकि हवामहल को हमेशा से ही एक विशेष नज़रिए से ही देखा गया है जिसमें सिर्फ़ हँसी है, गंभीरता नहीं है। इसीलिए हवामहल हमेशा हवामहल ही रहा और यह ध्यान ही नहीं रहा कि हवामहल के नीचे ज़मीन भी है।

3 comments:

Batangad said...

हवामहल की तो वो टिडिंग टिडिंग वाली धुन भी जेहन में अब तक याद है।

Sajeev said...

वाह बहुत बढ़िया याद दिलाई आपने, उन दिनों जब टेलीविजन पर भी कोई धारावाहिक जैसी चीज़ नही थी हवा महल मनोराजन की उस कमी को बखूबी पूरा करता था
सजीव सारथी
www.hindyugm.com

Yunus Khan said...

आपको बता दें कि हवामहल और जयमाला विविध भातरी के सबसे पुराने कार्यक्रम हैं । सन 57 से आज तक चल रहे हैं । हवामहल में देश भर के आकाशवाणी केंद्रों से रिकॉर्डिंग्‍स भेजी जाती हैं । आज भी ये सिलसिला जारी है ।
हवामहल एक तरह से हमारे लिए नॉस्‍टेलजिया का स्‍त्रोत है ।

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